Kulgeet



शत-शत नमन हमारा इस ज्ञान स्रोत को
वंदन प्रणत हमारा इस शुभ परिसर को
गीत ज़िन्दगी के सीखे जिससे आँचल में
गुने मंत्र – सिद्धान्त जहाँ विज्ञान-कला के
खुलते नये क्षितिज बहुरंगी जहाँ निरन्तर
मिलती विविध दृष्टियाँ अनगिन विषयों पर
विनत हमारा मस्तक इस विद्या -मन्दिर को
वंदन प्रणत हमारा इस शुभ परिसर को
अर्पित पुष्प हमारे इस कर्मभूमि को
वंदन प्रणत हमारा इस शुभ परिसर को
भाव बुद्धि मन होते विकसित यहाँ हमारे
मूल्य सभ्यता संस्कृति के हों मुखरित सारे
सीखा पाठ जहाँ हमने समता, ममता का
सहिष्णुता सहयोग, वेदना और विवेक का
अर्चन – नमन हमारा इस ज्ञान - स्त्रोत को
वंदन प्रणत हमारा इस शुभ परिसर को